Wednesday, April 11, 2012

एक अकेला इस शहर में......!



एक अकेला इस शहर में,
रात में और दोपहर में
आब\-ओ\-दाना ढूँढता है,
आशियाना ढूँढता है

दिन खाली खाली बर्तन है,
और रात है जैसे अंधा कुँवा
इन सूनी अन्धेरी आँखों में,
आँसू की जगह आता हैं धुँ_आ
जीने की वजह तो कोई नहीं,
मरने का बहाना ढूँढता है
एक अकेला इस शेहर में

इन उम्र से लम्बी सड़कों को,
मन्ज़िल पे पहुँचते देखा नहीं
बस दौड़ती फिरती रहती हैं,
हम ने तो ठहरते देखा नहीं
इस अजनबी से शेहर में,
जाना पहचाना ढूँढता है
एक अकेला इस शेहर में

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